लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> ज्ञानयोग

ज्ञानयोग

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9578
आईएसबीएन :9781613013083

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

335 पाठक हैं

स्वानीजी के ज्ञानयोग पर अमेरिका में दिये गये प्रवचन


सर्वोच्च अन्तर्मुख स्वभाववाले  (सात्त्विक) हैं, जो आत्मा में ही रहते हैं। ये तीन गुण हर मनुष्य में भिन्न अनुपात में हैं और विभिन्न गुण विभिन्न अवसरों पर प्रधानता प्राप्त करते हैं। हमें तमस् और रजस् को जीतने का और तब उन दोनों को सत्त्व में मिला देने का अवश्य प्रयत्न करना चाहिए।

सृष्टि कुछ बना देना, नहीं है, वह तो सम-संतुलन को पुन: प्राप्त करने का एक संघर्ष है, जैसे किसी कार्क के परमाणु एक जलपात्र की पेंदी में डाल दिये जाने पर, वे पृथक्-पृथक् और गुच्छों में ऊपर की ओर झपटते है और जब सब ऊपर आ जाते हैं और सम-संतुलन पुन: प्राप्त हो जाता है तो समस्त गति या 'जीवन’ एक हो जाता है। यही बात सृष्टि की है; यदि सम-सन्तुलन प्राप्त हो जाय तो सब परिवर्तन रुक जाएँगे। जीवन नामधारी वस्तु समाप्त हो जाएगी। जीवन के साथ अशुभ अवश्य रहेगा, क्योंकि सन्तुलन पुन: प्राप्त हो जाने पर संसार अवश्य समाप्त हो जाएगा, क्योंकि समत्व और नाश एक ही बात है। सदैव बिना दुःख के आनन्द ही पाने की कोई सम्भावना नहीं है। या बिना अशुभ के शुभ पाने की, क्योंकि जीवन स्वयं ही तो खोया हुआ सम-सन्तुलन है। जो हम चाहते हैं, वह मुक्ति है, जीवन आनन्द या शुभ नहीं। सृष्टि शाश्वत है, अनादि, अनन्त, एक असीम सरोवर में सदैव गतिशील लहर। उसमें अब भी ऐसी गहराइयाँ हैं, जहाँ कोई नहीं पहुँचा और जहाँ अब ऐसी निस्पन्दता पुन: स्थापित हो गयी है; किन्तु लहर सदैव प्रगति कर रही है, सन्तुलन पुन: स्थापित करने का संघर्ष शाश्वत है। जीवन और मृत्यु उसी तथ्य के विभिन्न नाम हैं, वे एक सिक्के के दो पक्ष हैं। दोनों ही माया हैं, एक बिन्दु पर जीवित रहने के प्रयत्न की अगम्य स्थिति और एक क्षण बाद मृत्यु। इस सब से परे सच्चा स्वरूप है, आत्मा। हम सृष्टि में प्रविष्ट होते हैं और तब वह हमारे लिए जीवन्त हो जाती है। वस्तुएँ स्वयं तो मृत हैं, केवल हम उन्हें जीवन देते हैं; और तब मूर्खों के सदृश हम घूमते हैं और या तो उनसे डरते हैं या उनका उपभोग करते हैं। संसार न तो सत्य है न असत्य, वह सत्य की छाया है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book