कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
८१
हिरनियों में भी हो गयी हलचल
हिरनियों में भी हो गयी हलचल
तेरी आँखों का देखकर काजल
उसकी पलकें झुकी, उठी ऐसे
जैसे पानी में खिल रहा हो कमल
उसने जुल्फें जो खोल दीं अपनी
कितने शर्मिन्दा हो गये बादल
जिस्म उसका है संगे-मरमर सा
छू लिया तो वो हो गया मख़मल
अब हवाओं में भी शरारत है
उड़ न जाये कहीं तेरा आँचल
जब से गुज़रा है वो गली से मेरी
तब से घर में महक रहा संदल
बन्द था मेरे घर का दरवाज़ा
आप आये तो खुल गयी साँकल
मेरे होंठों ने चूम ली बिन्दिया
और नजरों ने चूम ली पायल
‘क़म्बरी’ तो उदास था लेकिन
आये वो घर में हो गया मंगल
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