कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
७
यहाँ कोई भी सच्ची बात अब
यहाँ कोई भी सच्ची बात अब मानी नहीं जाती
मेरी आवाज़ इस बस्ती में पहचानी नहीं जाती
बढ़ो आगे, करो रौशन, दिशाओं को, चिताओं से
अकारथ दोस्तो कोई भी क़ुर्बानी नहीं जाती
महल हैं, भीड़ है, मंदिर हैं, मस्जिद है, मशीने हैं
मगर फिर भी शहर से दूर वीरानी नहीं जाती
कहीं बोतल, कहीं साग़र, कहीं मीना, कहीं साक़ी
ये महफ़िल ऐसी बिखरी है कि पहचानी नहीं जाती
ये झूठे आश्वासन आप अपने पास ही रखिये
दहकती आग पर चादर कभी तानी नहीं जाती
ज़बाँ बेंची, कला बेंची, यहाँ तक कल्पना बेंची
नियत फ़नकार की अब ‘क़म्बरी’ जानी नहीं जाती
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