कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
६९
जो बात मुद्दतों से मेरे दिल में रह गयी
जो बात मुद्दतों से मेरे दिल में रह गयी
उसकी निगाह एक ही लम्हे में कह गयी
फिर बेवफ़ाई कर गयी प्यासों से वो नदी
बहना कहीं था उसको, कहीं और बह गयी
इसको कहोगे क्या ये मुक़द्दर की बात है
साये में जिसके बैठे थे दीवार ढह गयी
वो बन गया रक़ीब बस इतनी सी बात पर
मेरी निगह गयी, वहीं उसकी निगह गयी
ये उम्र गुजरने का है अंदाज़ भी अजीब
कोई न जान पाया गुज़र किस तरह गयी
ऐ ‘क़म्बरी’ ये पीठ तो जनता की पीठ है
चाहे हो जैसी मार हर एक मार सह गयी
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