कविता संग्रह >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
७९
रेत पर एक मछली मचलने लगी
रेत पर एक मछली मचलने लगी
ज़िन्दगी अपने हाथों को मलने लगी
इस क़दर चाँद-सूरज ने आँहें भरीं
दिन सुलगने लगा, रात जलने लगी
ये उजाले हुये भी तो किस काम के
रौशनी-रौशनी को निगलने लगी
लिख रहे थे जो कल तक मोहब्बत के ख़त
उनकी तहरीर भी अब बदलने लगी
‘क़म्बरी’ मुन्तज़िर है सरे-शाम से
आप आयेंगे कब, रात ढलने लगी
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