उपन्यास >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
मांजी हरिद्वार में है। कमल भी नैनीताल से बाहर गया हुआ है। दूसरा कोई नहीं था जिसे इस दर्दनाक खबर की वह सूचना दे सके। सबकी अनुपस्थिति में यह घटना घटी। यह सोचकर तो उसकी सांसें टूट गईं। किसी ने अगर उसपर संदेह किया तो वह क्या उत्तर देगी?
सैकड़ों बातें उसके दिमाग में आईं और उसकी नस-नस को झन-झनाकर चली गईं। ऐसी दशा में वह क्या करे, उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
सहसा उसे डाक्टर का ख्याल आया। उसने लपककर टेलीफोन उठाया और नम्बर डायल किया।
''हलो, हलो...डाक्टर साहब...बाबूजी...।'' वह कहते-कहते रुक गई।
''हां हां, कहो, क्या हुआ बाबूजी को?'' दूसरी ओर से आवाज आई।
वह हाथों में रिसीवर थामे चुप खड़ी रही। उसने सोचा, वह डाक्टर को बुलाकर अपनी ही जान पर आफत लाने का कारण बन रही है।
''हलो हलो!'' डाक्टर बराबर टेलीफोन पर पुकार रहा था लेकिन अंजना उत्तर देने का साहस खो बैठी थी। उसने झट से टेलीफोन बंद कर दिया और भयभीत-सी इधर-उधर देखने लगी।
दूर बगीचे में राजीव अभी तक खेल रहा था। उसके चहचहाने की आवाज अभी तक वहां की शांति को भंग कर रही थी। उसे लगा जैसे दुर्भाग्य की छाया फिर उसे मिट्टी में मिलाने पर तुल गई है।
वह इसी असमंजस में घिरी दीवार का सहारा लेकर खड़ी हो गई और अपने दुर्भाग्य पर रोने लगी। इतने में रमिया की आवाज ने उसे चौंका दिया। वह शायद किसी काम से उसी ओर बढ़ती आ रही थी। अंजना के अर्धमूर्छित शरीर में बिजली-सी लहरा उठी और वह चाय की ट्रे उठाकर बड़े हाल में आ गई।
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