उपन्यास >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
अंजना ने जब कुछ क्षण कोई उत्तर नहीं दिया तो तिवारी ने दुबारा प्रश्न किया-''बोलो, यह कौन है? तुम्हें सबसे पहले कहां मिली? तुमसे क्या रिश्ता है इसका?''
''हां अंजू! कह दो ना, तुम्हें यह सबसे पहले कहां मिली?'' यह आवाज बनवारी की थी जो यह कहते-कहते अंदर आ गया था। यह उसे देखकर पानी-पानी हो गई।
बनवारी ने अपना सवाल दुहराया-''बता दो ना, यह पहले-पहल कहां मिली थी?''
''इंस्पेक्टर साहब!'' वह तिलमिला उठी।
''यस मैडम!''
''यह कौन आदमी है? और इसे यह पूछने का क्या हक है?''
''यह एक सरकारी गवाह है, पुलिस को सच्ची बात बताने वाला।''
''फिर इससे ही पूछ लीजिए कि यह मक्कार औरत कौन है!'' वह झुंझलाकर बोली।
''डिप्टी साहब की बहू और राजीव की मां।'' बनवारी ने नपे-तुले ढंग से कहा।
''नहीं, यह बकवास है।''
''अंजू! मेरी बात मानो। पुलिस वालों से झूठ बोलकर तो हम कहीं के नहीं रहेंगे। सच-सच कह दो कि तुम कौन हो, मैं कौन हूं और इस औरत का इस खानदान से क्या रिश्ता है!''
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