| व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मन की शक्तियाँ मन की शक्तियाँस्वामी विवेकानन्द
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मनुष्य यदि जीवन के लक्ष्य अर्थात् पूर्णत्व को
 प्रत्येक मनुष्य का विकास उसके अपने स्वभावानुसार ही होना चाहिए। जिस प्रकार हर एक विज्ञानशास्त्र के अपने अलग-अलग तरीके होते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक धर्म में भी हैं। धर्म के चरम लक्ष्य की प्राप्ति के तरीकों या साधनों को हम योग कहते हैं। विभिन्न प्रकृतियों औऱ स्वभावों के अनुसार योग के भी विभिन्न प्रकार हैं। उनके निम्नलिखित चार विभाग हैं- 
 
 (1) कर्म-योग -
 इसके अनुसार मनुष्य अपने कर्म और कर्तव्य के द्वारा अपने ईश्वरीय स्वरूप की अनुभूति करता है।
 
 (2) भक्ति-योग - 
 इसके अनुसार अपने ईश्वरीय स्वरुप की अनुभूति सगुण ईश्वर के प्रति भक्ति और प्रेम के द्वारा होती है।
 
 (3) राज-योग -
 इसके अनुसार मनुष्य अपने ईश्वरीय स्वरूप की अनुभूति मन:संयम के द्वारा करता है। 
 
 (4) ज्ञान-योग -
 इसके अनुसार अपने ईश्वरीय स्वरूप की अनुभूति ज्ञान के द्वारा होती है। ये सब एक ही केन्द्र – भगवान् - की ओर ले जानेवाले विभिन्न मार्ग हैं। वास्तव में, धर्ममतों की विभिन्नता लाभदायक है, क्योंकि मनुष्य को धार्मिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा वे सभी देते हैं और इस कारण सभी अच्छे हैं। जितने ही अधिक सम्प्रदाय होते हैं मनुष्य की भगवद्भावना को सफलतापूर्वक जागृत करने के उतने ही अधिक सुयोग मिलते हैं।
 
 
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