व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मन की शक्तियाँ मन की शक्तियाँस्वामी विवेकानन्द
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मनुष्य यदि जीवन के लक्ष्य अर्थात् पूर्णत्व को
मनुष्य के ज्ञान, शक्ति औऱ सुख की वृद्धि होती जा रही है। हम एक जाति के रूप में लगातार उन्नति करते जा रहे हैं। हम देखते हैं कि यह सच है, बिलकुल सच है। क्या यह प्रत्येक व्यक्ति के विषय में भी सत्य है? हाँ कुछ अंश तक सच है। किन्तु फिर वही प्रश्न उठता है कि इसकी सीमा-रेखा कौनसी है? मैं तो केवल कुछ ही गज दूरी तक देख सकता हूँ, लेकिन मैंने ऐसा मनुष्य देखा है, जो आँख बन्द कर लेता है और फिर भी बता देता है कि दूसरे कमरे में क्या हो रहा है। अगर तुम कहो कि हम इस पर विश्वास नहीं करते, तो शायद तीन सप्ताह के अन्दर वह मनुष्य तुममें भी वैसा ही सामर्थ्य उत्पन्न कर देगा। यह किसी भी मनुष्य को सिखलाया जा सकता है। कुछ मनुष्य तो सिर्फ पाँच मिनट के अन्दर ही यह जानना सीख सकते हैं कि दूसरे मनुष्य के मन में क्या चल रहा है। ये बातें प्रत्यक्ष कर दिखलायी जा सकती हैं।
अब यदि यह बात सच है, तो सीमा-रेखा कहाँ पर खींची जा सकती है? अगर मनुष्य कोने में बैठे हुए दूसरे मनुष्य के मन में क्या चल रहा है यह जान सकता है, तो वह दूसरे कमरे मे बैठे रहने पर भी क्यों न जान सकेगा, औऱ इतना ही क्यों, कहीं पर भी बैठकर क्यों न जान सकेगा? हम यह नहीं कह सकते कि ऐसा क्यों नहीं होगा हम यह कहने का साहस नहीं कर सकते कि यह असम्भव है। हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि हम नहीं जानते यह कैसे सम्भव है। ऐसी बातें होना असम्भव है, ऐसा कहने का भौतिक वैज्ञानिक को कोई अधिकार नहीं। वे सिर्फ कह सकते है, ‘हम नहीं जानते।’ विज्ञान का काम केवल इतना है कि घटनाओं को एकत्रित कर उन पर सिद्धान्त बाँधे, अनुस्यूत नियमों को निकाले और सत्य का विधान करे। परन्तु यदि हम घटनाओं का ही इन्कार करने लगें, तो विज्ञान बन कैसे सकता है।
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