धर्म एवं दर्शन >> मरणोत्तर जीवन मरणोत्तर जीवनस्वामी विवेकानन्द
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ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?
पुनर्जन्म
बहूनि में व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न तं वेत्थ परन्तप।।
सभी देशों में और सभी युगों में मनुष्य की बुद्धि को चक्कर में डालनेवाली
अनेक पहेलियों में से सबसे पेचीदा स्वयं मनुष्य ही है। इतिहास के उषःकाल से
जिन लाखों रहस्यों के उद्घाटन करने में मनुष्य की बहुतेरी शक्तियों का व्यय
किया गया है, उनमें सब से अधिक रहस्यमयी है स्वयं उसकी प्रकृति। वह तो बिलकुल
ही न सुलझने लायक पेचीदा गोरखधन्धा है और साथ ही साथ अन्य सभी समस्याओं से
बढ़कर महत्त्वपूर्ण है। हम जो कुछ जानते हैं, अनुभव करते हैं और कार्य करते
हैं, उन सब का मानवप्रकृति ही प्रारम्भस्थान और भण्डार होने के कारण कभी भी
ऐसा समय नहीं रहा है और न भविष्य में ही रहेगा जब कि मानवप्रकृति मनुष्य के
लिए सब से अधिक और सर्वप्रथम विचार का विषय न हो।
मानव-अस्तित्व के साथ अति निकट सम्बन्ध रखनेवाली प्रबल जिज्ञासा उस सत्य के
प्रति होने के कारण, या बाह्य सृष्टि के माप के आन्तरिक पैमाने के लिए
सर्वोपरि उत्कट इच्छा रहने के कारण, या परिवर्तनशील संसार में एक अचल केन्द्र
प्राप्त करने की अत्यधिक स्वाभाविक आवश्यकता प्रतीत होने के कारण, मनुष्य कभी
कभी मुट्ठी भर धूलि को ही सुवर्ण जानकर ग्रहण कर लेता है और तर्क या बुद्धि
से श्रेष्ठ आन्तरिक ध्वनि द्वारा सचेत किये जाने पर भी अन्तःस्थित ईश्वरत्व
का सच्चा अर्थ ठीक-ठीक लगाने में कई बार भूल करता है, तथापि जब से खोज या शोध
का प्रारम्भ हुआ है, तब से ऐसा समय कभी नहीं रहा जब कि किसी जाति या कुछ
व्यक्तियों ने सत्य के दीपक को ऊँचा न उठाये रखा हो।
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