धर्म एवं दर्शन >> मरणोत्तर जीवन मरणोत्तर जीवनस्वामी विवेकानन्द
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ऐसा क्यों कहा जाता है कि आत्मा अमर है?
पहली बात तो यह है कि ईश्वर सभी घटनाओं का एकमात्र सामान्य कारण है, इसलिए
प्रश्न यह है कि कुछ विशिष्ट घटनाओं के स्वाभाविक कारणों का पता मानवात्मा
में ही लगाना होगा। अत: ''कर्ता-धर्ता सब ईश्वर ही है'' (Deus exmachina) का
सिद्धान्त यहाँ बिलकुल असंगत है। इसका अर्थ तो इसके सिवाय और कुछ नहीं होता
कि हम अपना अज्ञानी होना स्वीकार करते हैं। मानव-ज्ञान के किसी भी विभाग में
किसी भी प्रश्न के पूछे जाने पर हम यही उत्तर दे सकते हैं और हर प्रकार की
जिज्ञासा को - और परिणामत: ज्ञान को ही - समाप्त कर सकते हैं।
दूसरी बात यह है कि हर समय ईश्वर की सर्वशक्तिमत्ता की दुहाई देना केवल
शब्द-जाल है। कारण का, कारण के रूप में कार्य के लिए पर्याप्त होना ही हमें
विदित होता है, और हो सकता है; इससे अधिक और कुछ नहीं। इस तरह हम किसी
सर्वशक्तिमान कारण की अपेक्षा किसी अनन्त कार्य के विषय में और अधिक विचार
नहीं कर सकते। इसके सिवाय यह भी है कि ईश्वर सम्बन्धी हमारे सभी विचार
समर्याद ही हैं, उसे कारण कहना भी तो हमारे ईश्वर सम्बन्धी विचार को मर्यादित
कर देना है।
तीसरी बात यह है कि वह स्वीकार भी कर लिया जाय, तो हम ऐसे किसी असम्भव
सिद्धान्त को तब तक मानने को बाध्य नहीं हैं कि ''कुछ नहीं (या शून्य) मे से
कोई पदार्थ उत्पन्न हुआ'' या ''किसी अनन्त पदार्थ का आदि या आरम्भ किसी
विशिष्ट काल में हुआ।'' जब तक कि हम इसे दूसरी अधिक अच्छी रीति से समझ सकते
हैं।
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