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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मेरा जीवन तथा ध्येय मेरा जीवन तथा ध्येयस्वामी विवेकानन्द
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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान
अपने निम्न वर्ग के लोगों के प्रति हमारा एकमात्र कर्तव्य है उनको शिक्षा देना, उन्हें सिखाना कि इस संसार में तुम भी मनुष्य हो, तुम लोग भी प्रयत्न करने पर अपनी सब प्रकार उन्नति कर सकते हो। अभी वे लोग यह भाव खो बैठे हैं।.. उनमें विचार पैदा करना होगा। उनके चारों ओर दुनिया में क्या क्या हो रहा है, इस संबंध में उनकी आंखें खोल देनी होंगी, बस, फिर वे अपनी मुक्ति स्वयं सिद्ध कर लेंगे।
प्रत्येक राष्ट्र, प्रत्येक पुरुष और प्रत्येक स्त्री को अपनी अपनी मुक्ति स्वयं सिद्ध करनी पडेगी। उनमें विचार पैदा कर दो - बस, उन्हें उसी एक सहायता की जरूरत है, शेष सब कुछ इसके फलस्वरूप आप ही हो जायगा। हमें केवल रासायनिक सामग्रियों को इकट्ठा भर कर देना है, उनका निर्दिष्ट आकार प्राप्त करना बँध जाना तो प्राकृतिक नियमों से ही साधित होगा। हमारा कर्तव्य है, उनमें भावों का संचार कर देना बाकी वे स्वयं कर लेंगे। भारत में बस यही करना है।
मेरी योजना है, भारत के इस जनता-समूह तक पहुँचने की। हमें अपने पूर्वजों द्वारा निश्चित की हुई योजना के अनुसार चलना होगा, अर्थात् सब आदर्शों को धीरे-धीरे जनता में पहुँचाना होगा। उन्हें धीरे-धीरे ऊपर उठाइए। अपने बराबर उठाइए। उन्हें लौकिक ज्ञान भी धर्म के द्वारा दीजिए। मान लो, इन तमाम गरीबों के लिए तुमने पाठशालाएँ खोल भी दीं, तो भी उनको शिक्षित करना संभव न होगा।
कैसे होगा? चार बरस का बालक तुम्हारी पाठशाला में जाने की अपेक्षा अपने हल-बखर की ओर जाना अधिक पसंद करेगा। वह तुम्हारी पाठशाला न जा सकेगा। पर यदि पहाड़ मुहम्मद के पास नहीं जाता, तो मुहम्मद पहाड़ के पास पहुँच सकता है। मैं कहता हूँ कि शिक्षा स्वयं दरवाजे दरवाजे क्यों न जाय? यदि खेतीहर का लड़का शिक्षा तक नहीं पहुँच पाता, तो उससे हल के पास, या कारखाने में अथवा जहाँ भी हो, वही क्यों न भेंट की जाय? जाओ उसी के साथ उसकी परछाईं के समान।
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