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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मेरा जीवन तथा ध्येय

मेरा जीवन तथा ध्येय

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9588
आईएसबीएन :9781613012499

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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान


इन लोगों को उठाना होगा, इन्हें अभयवाणी सुनानी होगी, बतलाना होगा कि तुम भी हमारे समान मनुष्य हो, तुम्हारा भी हमारे समान सब में अधिकार है।

उच्च वर्णों को नीचे उतारकर इस समस्या की मीमांसा न होगी, किंतु नीची जातियों को ऊंची जातियों को बराबर उठाना होगा।.. उस आदर्श का एक छोर ब्राह्मण है और दूसरा छोर चांडाल, और संपूर्ण कार्य चांडाल को उठाकर ब्राह्मण बनाना है। जातियों में समता लाने के लिए एकमात्र उपाय उस संस्कार और शिक्षा का अर्जन करना है, जो उच्च वर्णों का बल और गौरव है।

तुम्हें सावधान रहना चाहिए कि गरीब किसान-मजदूर और धनवानों में परस्पर कहीं जाति-विरोध का बीज न पड़ जाय।

विशेषाधिकार का भाव मानवजीवन का विष है।... जब कभी विशेषाधिकार तोड़ दिया जाता है, तब जाति को अधिकाधिक प्रकाश तथा प्रगति उपलब्ध होती है।.. किसी को रंचमात्र विशेषाधिकार नहीं है। यह स्वाभाविक है कि कुछ लोग स्वभावतः सक्षम होने के कारण दूसरों की अपेक्षा अधिक धन संग्रह कर ले, किंतु धन प्राप्त करने के इस सामर्थ्य के कारण वे उन लोगों पर अत्याचार और अंधाधुंध व्यवहार करें, जो उतना अधिक धन संग्रह करने में समर्थ न हो, तो यह कानून का अंग नहीं है, और संघर्ष इसके विरुद्ध हुआ है। अन्य के ऊपर सुविधा के उपभोग को विशेषाधिकार कहते हैं और इसका विनाश करना युग-युग से नैतिकता का उद्देश्य रहा है। यह कार्य ऐसा है, जिसकी प्रवृत्ति साम्य और एकत्व की ओर है तथा जिससे विविधता का विनाश नहीं होता। इस प्रकार अपने विशेषाधिकारों तथा अपने भीतर की उस प्रत्येक वस्तु को, जो विशेषाधिकार के लाभ में सहायक है, रौंदते हुए हम उस ज्ञान के लिए उद्यम करें, इससे समस्त मनुष्यजाति के प्रति अनन्यता की भावना पैदा हो।

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