लोगों की राय

व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मेरा जीवन तथा ध्येय

मेरा जीवन तथा ध्येय

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9588
आईएसबीएन :9781613012499

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

252 पाठक हैं

दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान


आज्ञा-पालन के गुण का अनुशीलन करो, लेकिन अपने धर्मविश्वास को न खोओ। गुरुजनों के अधीन हुए बिना कभी भी शक्ति केंद्रीभूत नहीं हो सकती, और बिखरी हुई शक्तियों को केंद्रीभूत किये बिना कोई महान् कार्य नहीं हो सकता।

जो कुछ असत्य है, उसे पास न फटकने दो। सत्य पर डटे रहो; बस, तभी हम सफल होंगे शायद थोड़ा अधिक समय लगे, पर सफल हम अवश्य होंगे।... इस तरह काम करो कि मानो तुममें से हर एक के ऊपर सारा काम आ पड़ा है।

नीतिपरायण तथा साहसी बनो, अंतःकरण पूर्णतया शुद्ध रहना चाहिए। पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी बनो - प्राणों के लिए भी कभी न डरो। धार्मिक मतमतांतरों को लेकर व्यर्थ में माथा-पच्ची मत करो। कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीरपुरुष कभी पापानुष्ठान नहीं करते - यहाँ तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार नहीं लाते।

इन दो चीजों से बचे रहना क्षमताप्रियता और ईर्ष्या। सदा आत्मविश्वास का अभ्यास करना।

पहले आदमी - 'मनुष्य' उत्पन्न करो। हमे अभी 'मनुष्यों' की आवश्यकता है, और बिना श्रद्धा के मनुष्य कैसे बन सकते हैं?

उठो, जागो, स्वयं जगकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो।

''उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’’

उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाय।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book