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मेरा जीवन तथा ध्येय

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9588
आईएसबीएन :9781613012499

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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान

नया भारत गढ़ो

भूमिका

स्वाधीनता प्राप्ति के बाद से भारत की जनता में, विशेषकर नवयुवकों में, राष्ट्र को नये ढंग से गढ़ने की दिशा में सर्वत्र प्रबल उत्साह दिखाई दे रहा है। यह बात अत्यंत सराहनीय है। तथापि, यह कार्य हाथ में लेने के पहले हमें इस बात की स्पष्ट धारणा होनी चाहिए कि भावी भारत किस प्रकार गढ़ा जाय। जो चित्र अंकित करना हो उसका स्पष्ट स्वरूप मानसनेत्रों के सम्मुख लाने के पश्चात् ही चित्रकार उसे पट पर उतारता है। इसी प्रकार किसी इमारत का निर्माणकार्य आरंभ करते समय इंजीनिअर पहले इस विषय की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता है कि वह इमारत किस उद्देश्य से बनाई जा रही है--वह पाठशाला है या अस्पताल, कचहरी है या रहने का मकान। फिर वह नक्शा खींचता है और उसके अनुसार प्रत्यक्ष निर्माणकार्य आरंभ करता है।

हमें भी राष्ट्र का गठनकार्य आरंभ करने के पहले, सर्वप्रथम भावी भारत के स्वरूप के संबंध में स्पष्ट धारणा कर लेनी चाहिए। क्या हमें भारत को एक महान् फौजी राष्ट्र बनाना है? कदापि नहीं, क्योंकि आज तक कोई भी फौजी शासन अधिक काल नहीं टिक पाया। हिटलर और मुसोलिनी का ही परिणाम देखो।

हमारा राष्ट्र गरीब है। अपने बांधवों की भूख मिटाने के लिए हमें धन चाहिए। किंतु क्या केवल रोटी के टुकड़ों से हमारी समस्या हल हो सकेगी? इतनी वैभवसंपन्नता के बावजूद क्या अमेरिका ओर उस तरह के अन्य उन्नत राष्ट्रों के लोगों को मन की शांति और सुख मिला है? ऐसा तो नहीं दिखाई पड़ता। इनमें से कुछ देशों के नवयुवकों की ओर देखो--संपन्न परिवार में जन्म लेने के बावजूद उन देशों के कितने ही युवक और युवतियाँ आज घोर निराशा के शिकार बने हुए हैं।

जीवन में अर्जन करने योग्य कुछ भी दिखाई न देने के कारण वे कैसे उद्देश्यहीन बने भटक रहे हैं। उनमें से कुछ तो बड़े रईस हैं। पर जीवन का कोई उद्देश्य न रहने के कारण वे सदा एक प्रकार की भयानक उद्देश्यहीनता महसूस कर रहे हैं।

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