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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मेरा जीवन तथा ध्येय

मेरा जीवन तथा ध्येय

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9588
आईएसबीएन :9781613012499

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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान


नीच जाति के लोगों से हमारी जनता बनी है, युग युग से ऊँची जातिवालों के अत्याचार से, उठते-बैठते ठोकरे खाकर एकदम वे मनुष्यत्व खो बैठे हैं और पेशेवर भिखमंगो जैसे हो गये हैं। वे हमारी शिक्षा के लिए धन देते हैं, हमारे मंदिर बनाते हैं, और बदले में ठोकरे पाते हैं। अगर हमारे देश में कोई नीच जाति में जन्म लेता है, तो वह हमेशा के लिए गया-बीता समझा जाता है, उसके लिए कोई आशा-भरोसा नहीं। आइए, देखिए तो सही,.. त्रिवांकुर में जहाँ पुरोहितों के अत्याचार भारतवर्ष भर में सब से अधिक है, जहाँ एक-एक अंगुल जमीन के मालिक ब्राह्मण हैं.. वहाँ लगभग चौथाई जनसंख्या ईसाई हो गयी है! यह देखो न - हिंदुओं की सहानुभूति न पाकर मद्रास प्रांत में हजारों पेरिया ईसाई बने जा रहे हैं, पर ऐसा न समझना कि वे केवल पेट के लिए ईसाई बनते हैं। असल में हमारी सहानुभूति न पाने के कारण वे ईसाई बनते हैं। भारत के गरीबों में इतने मुसलमान क्यों हैं? यह सब मिथ्या बकबाद है कि तलवार की धार पर उन्होंने धर्म बदला। जमीदारों और पुरोहितों से अपना पिंड छुड़ाने के लिए ही उन्होंने ऐसा किया, और फलत: आप देखेंगे कि बंगाल में जहाँ जमीदार अधिक हैं, वहाँ हिंदुओं से अधिक मुसलमान किसान हैं।

भंगियों और चांडालों को उनकी वर्तमान हीन दशा में किसने पहुँचाया? इसके लिए उत्तरदायी कौन है? मेरा मन बार-बार यह जवाब देता है कि इसके लिए अंग्रेज उत्तरदायी नहीं हैं; बल्कि अपनी इस दुरवस्था के लिए, अपनी इस अवनति और इन सारे दुःख-कष्टों के लिए, एकमात्र हमी उत्तरदायी हैं हमारे सिवा इन बातों के लिए और कोई जिम्मेदार नहीं हो सकता। दोष उनका है, जो ढोंगी और दंभी हैं, जो पारमार्थिक' और 'व्यावहारिक' सिद्धांतों के रूप में अनेक प्रकार के अत्याचार के अस्त्रों का निर्माण करते हैं।

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