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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> मेरा जीवन तथा ध्येय

मेरा जीवन तथा ध्येय

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9588
आईएसबीएन :9781613012499

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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान

जनजागरण

तुम्हारे देश का जनसाधारण मानो एक सोया हुआ तिमिंगल (एक विशालकाय समुद्री जीव) है। सदाचारसंबंधी जिनकी उच्च अभिलाषा मर चुकी है, भविष्य की उन्नति के लिए जो बिलकुल चेष्टा नहीं करते और भलाई करनेवाले को धर दबाने में जो हमेशा तत्पर हैं ऐसे मृत जड़पिंडों के भीतर क्या तुम प्राणसंचार कर सकते हो? क्या तुम उस वैद्य की जगह ले सकते हो, जो लातें मारते हुए उद्दंड बच्चे के गले में दवाई डालने की कोशिश करता हो?

मैंने जापान में सुना कि वहाँ की लड़कियों का यह विश्वास है कि यदि उनकी गुड़ियों को हृदय से प्यार किया जाय तो वे जीवित हो उठेंगी। .. मेरा भी विश्वास है कि यदि हतश्री अभागे, निर्बुद्ध, पददलित, चिरबुभुक्षित, झगड़ालू और ईर्षालू भारतवासियों को भी कोई हृदय से प्यार करने लगे तो भारत पुन: जागृत हो जायगा।

हमने राष्ट्र की हैसियत से अपना व्यक्तिभाव खो दिया है और यही सारी खराबी का कारण है। हमें राष्ट्र को उसके खोये हुए व्यक्तिभाव को वापस लाना है और जनसमुदाय को उठाना है। भारत को उठाना होगा, गरीबों को भोजन देना होगा, शिक्षा का विस्तार करना होगा और पुरोहित- प्रपंच की बुराइयों का निराकरण करना होगा।.. सब के लिए अधिक अन्न और सब को अधिकाधिक सुविधाएँ मिलती रहें।

पहले कूर्म अवतार की पूजा करनी चाहिए। पेट है वह कूर्म। इसे पहले ठंडा किये बिना धर्म-कर्म की बात कोई ग्रहण नहीं करेगा। देखते नहीं, पेट की चिंता से भारत बेचैन है। धर्म की बात सुनाना हो तो पहले इस देश के लोगों के पेट की चिंता को दूर करना होगा। नहीं तो केवल व्याख्यान देने से विशेष लाभ न होगा। पहले रोटी और तब धर्म चाहिए। गरीब बेचारे भूखों मर रहे हैं, और हम उन्हें आवश्यकता से अधिक धर्मोपदेश दे रहे हैं! मतमतांतरो से पेट नहीं भरता।

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