कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
15. यह देख फिर माँ मेरी
यह देख फिर माँ मेरी
खुद भी आँसू बहाने लगी
पिता से छुड़ा अपनी बाँहो में
ले छाती से लगाने लगी
भिगो दिया मेरे सिर को
प्यार दिया इतना मुझको
मैं माँ को लिपटाने लगी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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