कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
26. फिर मैं आकर लेट गई
फिर मैं आकर लेट गई
अपने कमरे में चारपाई पर
आँखं मिचूँ, मिच ना पायें
थी मैं खुश अपनी किस्मत पर
शायद सुन्दर होगा वर
कैसा होगा मेरा वर।
यूँ सोच रातें कई गुजारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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