कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
|
6 पाठकों को प्रिय 268 पाठक हैं |
मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
36. एक शाम जब पिताजी आये
एक शाम जब पिताजी आये
घर में खुशियों की लहर लाये
बोले माँ के पास में आके
हम लड़का पक्का कर आये
घर बड़ा है, ठाठ बड़े हैं
खूब अमीर, पैसे वाले हैं
यह सुनकर मैं शर्माती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book