कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
43. फिर चुप्पी को तोड़ते हुए
फिर चुप्पी को तोड़ते हुए
रूंधे मुँह से पिता बोले
हमारी जिन्दगी पार हो चली
तुम सुखी रहो, हम चाहते
यह सुन आँखों से टप-टप
गिरने लगा पानी झर-झर
कैसे पोछूं मैं अपने आँसूं।
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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