कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
58. उसके शब्द सुन-सुन
उसके शब्द सुन-सुन
ठंड कलेजे में होती हैं
यदि शाम को आ बैठा तो
मन की धड़कन बढ़ जाती है
कहीं आ बैठा यदि शाम को
क्या जवाब दूँगी मैं पिता को
यह सोच मैं घबराती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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