कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
93. मेरे वो चारों बेटे
मेरे वो चारों बेटे
जिन्हें भूल चुकी थी मैं
वो भी दयनीय दशा में
फटे कपड़ों में खाने आये
मेरी पत्थर आँखें भी
एक बार फिर चमक उठी
मैं ममता की मारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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