कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
95. कितनों ने खाया कितने चले गये
कितनों ने खाया कितने चले गये
पर ये चारों अभी तक जुटे रहे
उनको देख लग रहा था ये
शायद कई दिनों से भूखे थे।
उनको यूँ खाते देखकर
ममता मेरी रही थी छलक।
कलेजे पर हाथ मैं रखती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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