कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
|
6 पाठकों को प्रिय 268 पाठक हैं |
मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
100. मेरे उन चारों बेटों की
मेरे उन चारों बेटों की
करते हैं पड़ोसी खूब धुनाई
पिटते, कुटते रोते हैं
मेरी पलकें डबडबाई।
आँसू छलक पड़ते हैं मेरे
पुत्र तो ये भी हैं मेरे।
अब मैं नीर बहाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book