कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
105. भूल गई सभी पुरानी बातें
भूल गई सभी पुरानी बातें
पाँचों को गले लगाया मैंने
अब सभी खुशी-खुशी से
अपने-अपने घर रहने लगे।
सभी पुत्र समान एक हैं,
न कोई छोटा बड़ा है।
मन चाहे उस घर जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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