कविता संग्रह >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
10. मुझको उँगली पकड़ कर माँ
मुझको उँगली पकड़ कर माँ
पूरे चौक में घुमाती है।
जब गिर पड़ती कभी जो मैं
माँ भागकर उठाती है।
सीने से फिर लगा लेती है
ओर गीत गाने लगती है।
मैं झट से सो जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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