व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो नया भारत गढ़ोस्वामी विवेकानन्द
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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।
हमारा जाति-भेद और हमारी
प्रथाऐं.. राष्ट्र के रूप में हमारी रक्षा के लिए
आवश्यक थीं। और अब आत्मरक्षा के लिए इनकी जरूरत न रह जायगी तब स्वभावत: ये
नष्ट हो जायगी।
यूरोप और अमेरिका में जिस
तरह का जाति-भेद है भारतीय जाति- भेद उससे अच्छा
है।.. यदि जाति न होती, तो आज आप कहाँ होते? यदि जाति न होती, तो आपका
ज्ञान-भंडार और दूसरी वस्तुएँ कहां होतीं? यदि जाति न होती, तो आज
यूरोपवालों के अध्ययन करने के लिए कुछ भी न बचा होता। मुसलमानों ने सब कुछ
नष्ट कर दिया होता। वह कौनसा स्थल है, जहाँ हम भारतीय समाज को स्थिर खड़ा
पाते हैं? यह सदा, गतिमान रहा है। कभी कभी, जैसे कि विदेशी आक्रमणों के
समय में, यह गति मंद रही है, पर दूसरे अवसरों पर अधिक तेज रही है। मैं
अपने देशवासियों से यही कहता हूँ। मैं उन्हें दोष नहीं देता। मैं उनके
अतीत में देखता हूँ कि ऐसी परिस्थितियों में कोई भी देश इससे अधिक शानदार
काम नहीं कर सकता था। मै उन्हें बताता हूँ कि आपने बहुत अच्छा काम किया
है। और उनसे केवल और अच्छा करने के लिए कहता हूँ।
जाति निरंतर बदल रही है,
अनुष्ठान बदल रहे हैं, यही दशा विधियों की है। यह
केवल सार है, सिद्धांत है, जो नहीं बदलता।
जाति-व्यवस्था का नाश
नहीं होना चाहिए, उसे केवल समय-समय पर परिस्थितियों
के अनुकूल बनाया जाना चाहिए। हमारी पुरानी व्यवस्था के भीतर इतनी
जीवनी-शक्ति है कि उससे दो लाख नयी व्यवस्थाओं का निर्माण किया जा सकता
है। जाति-व्यवस्था को मिटाने की बात करना कोरी बुद्धिहीनता है। नयी रीति
यह है कि पुरातन का विकास हो।
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