व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो नया भारत गढ़ोस्वामी विवेकानन्द
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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।
यह रोना-धोना मचा है कि
हम बड़े गरीब हैं, परंतु गरीबों की सहायता के लिए
कितनी दान-शील संस्थाएँ हैं? भारत के लाख लाख अनाथों के लिए कितने लोग
रोते हैं? हे भगवान! क्या हम मनुष्य हैं? तुम लोगों के घरों के चतुर्दिक्
जो पशुवत् भंगी-डोम हैं, उनकी उन्नति के लिए तुम क्या कर रहे हो? उनके मुख
में एक ग्रास अन्न देने के लिए क्या करते हो?
तोते के समान बातें करना
हमारा अभ्यास हो गया है - आचरण में हम बहुत पिछड़े
हुए हैं। इसका क्या कारण है? शारीरिक दौर्बल्य। यह शारीरिक दुर्बलता कम से
कम हमारे एक तिहाई दुखों का कारण है। हम आलसी हैं। हम कार्य नहीं कर सकते,
हम पारस्परिक एकता स्थापित नहीं कर सकते, हम एक दूसरे से प्रेम नहीं करते,
हम बड़े स्वार्थी हैं, हम तीन मनुष्य एकत्र होते ही एक दूसरे से घृणा करते
हैं, ईर्ष्या करते हैं।
अपने राष्ट्र में
Organisation (संगठित होकर कार्यसंपादन करने) की शक्ति
का एकदम अभाव है। वही अभाव सब अनर्थों का मूल है। मिलजुलकर कार्य करने के
लिए कोई भी तैयार नहीं है। Organisation के लिए सब से पहले Obedience
(आज्ञापालन) की आवश्यकता है। हमारे दो दोष बड़े ही प्रबल हैं, पहला दोष
हमारी दुर्बलता है, दूसरा है घृणा करना, हृदयहीनता। लाखों मतमतांतरों की
बात कह सकते हो, करोड़ों संप्रदाय संगठित कर सकते हो, परंतु जब तक उनके
दुःख का अपने हृदय में अनुभव नहीं करते, वैदिक उपदेशों के अनुसार जब तक
स्वयं नहीं समझते कि वे तुम्हारे ही शरीर के अंग हैं, जब तक तुम और हे -
धनी और दरिद्र, साधु और असाधु सभी उसी एक अनंत पूर्ण के, जिसे तुम ब्रह्म
कहते हो, अंश नहीं हो जाते, तब तक कुछ न होगा।
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