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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो

नया भारत गढ़ो

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9591
आईएसबीएन :9781613013052

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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।


मैं जीवन भर काम करता रहा हूँ, कम से कम काम करने का प्रयत्न करता रहा हूँ, मैं अपने अनुभव के बल पर तुमसे कहता हूँ कि जब तक तुम सच्चे अर्थों में धार्मिक नहीं होते, तब तक भारत का उद्धार होना असंभव है। भारतवर्ष का प्राण धर्म ही है, उसके जाने पर भारत नष्ट हो जायगा। अत: भारत में किसी प्रकार का सुधार या उन्नति की चेष्टा करने के पहले धर्म-प्रचार आवश्यक है। भारत को समाजवादी अथवा राजनीतिक विचारों से प्लावित करने के पहले आवश्यक है कि उसमें आध्यात्मिक विचारों की बाढ़ ला दी जाय।

भारत के राष्ट्रीय आदर्श हैं: त्याग और सेवा। आप इन धाराओं में तीव्रता उत्पन्न कीजिए, और शेष सब अपने आप ठीक हो जायगा। भारत के सभी समाज-सुधारकों ने पुरोहितों के अत्याचारी और अवनति का उत्तरदायित्व धर्म के मत्थे मढ़ने की एक भयंकर भूल की और एक अभेद्य गढ़ को ढहाने का प्रयत्न किया। नतीजा क्या हुआ? असफलता। बुद्धदेव से लेकर राममोहन राय तक सब ने जाति-भेद को धर्म का एक अंग माना और जाति-भेद के साथ ही धर्म पर भी पूरा आघात किया और असफल रहें।

सुनो मित्र, प्रभु की कृपा से मुझे इसका रहस्य मालूम हो गया है। दोष धर्म का नहीं है। मेरा यही दावा है कि हिंदू समाज की उन्नति के लिए हिंदू धर्म के विनाश की कोई आवश्यकता नहीं और यह बात नहीं कि समाज की वर्तमान दशा हिंदू धर्म की प्राचीन रीति-नीतियों और आचारअनुष्ठानों के समर्थन के कारण हुई, वरन् ऐसा इसलिए हुआ कि धार्मिक तत्वों का सभी सामाजिक विषयों में अच्छी तरह उपयोग नहीं हुआ है। मैं इस कथन का प्रत्येक शब्द अपने प्राचीन शास्त्रों से प्रमाणित करने को तैयार हूँ। समाज की यह दशा दूर करनी होगी - परंतु धर्म का नाश करके नहीं, वरन् हिंदू धर्म के महान् उपदेशों का अनुसरण कर।

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