व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो नया भारत गढ़ोस्वामी विवेकानन्द
|
3 पाठकों को प्रिय 91 पाठक हैं |
संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।
सब बातों से यही प्रकट हो
रहा है कि समाजवाद अथवा जनता द्वारा शासन का कोई
स्वरूप, उसे आप चाहे जिस नाम से पुकारें, उभरता आ रहा है। लोग निश्चय ही
यह चाहेंगे कि उनकी पार्थिव आवश्यकताओं की पूर्ति हो, वे कम काम करें,
उनका शोषण न हो, युद्ध न हो और भोजन अधिक मिले। इस बात का हमारे पास क्या
प्रमाण है कि यह अथवा कोई दूसरी सभ्यता, जब तक कि वह धर्म पर, मनुष्य के
भीतर के शुभ पर आधारित न हो, स्थायी होगी? केवल आध्यात्मिक ज्ञान ही ऐसा
है, जो हमारे दुःखों को सदा के लिए नष्ट कर दे सकता है; अन्य किसी प्रकार
के ज्ञान से आवश्यकताओं की पूर्ति केवल अल्प समय के लिए ही होती है।
अतएव हमारा उद्देश्य है
आचंडाल प्रत्येक को धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष का
अधिकार प्राप्त कराने में सहायता करना। 'धर्म को बिना हानि पहुँचाये जनता
की उन्नति' - इसे अपना आदर्शवाक्य बना लो। दूसरे का अनुकरण करना सभ्यता की
निशानी नहीं है, यह एक महान् पाठ है, जो हमें याद रखना है। अनुकरण करना,
हीन और डरपोक की तरह अनुकरण करना कभी उन्नति के पथ पर आगे नहीं बढ़ा सकता।
वह तो मनुष्य के अधःपतन
का लक्षण है। उसी प्रकार तुम भी करो औरों से उत्तम
बातें सीखकर उन्नत बनो। जो सीखना नहीं चाहता, वह तो पहले ही मर चुका है।..
औरों के पास जो कुछ भी अच्छा पाओ, सीख लो, पर उसे अपने भाव के साँचे में
ढालकर लेना होगा। दूसरे की शिक्षा ग्रहण करते समय उसके ऐसे अनुगामी न बनो
कि अपनी स्वतंत्रता गँवा बैठो। भारत के इस जातीय जीवन को भूल मत जाना। पल
भर के लिए भी ऐसा न सोचना कि भारतवर्ष के सभी अधिवासी यदि अमुक जाति की
वेश-भूषा धारण कर लेते या अमुक जाति के आचार-व्यवहारादि के अनुयायी बन
जाते तो बड़ा अच्छा होता।
जहाँ तक हो सके अतीत की
ओर देखो, पीछे जो चिरंतन निर्झर बह रहा है, आकंठ
उसका जल पिओ और उसके बाद सामने देखो और भारत को उज्ज्वलतर, महत्तर और पहले
से और भी ऊँचा उठाओ। गत शताब्दी में सुधार के लिए जो भी आदोलन हुए हैं,
उनमें से अधिकांश केवल ऊपरी दिखावा मात्र रहे हैं। उनमें से प्रत्येक ने
केवल प्रथम दो वर्णों से ही संबंध रखा है, शेष दो से नहीं। विधवा-विवाह के
प्रश्न से 70 प्रतिशत भारतीय स्त्रियों का कोई संबंध नहीं है। और देखो,
मेरी बात पर ध्यान दो, इस प्रकार से सब आदोलनों का संबंध भारत के केवल
उच्च वर्णों से ही रहा है, जो जनसाधारण का तिरस्कार करके स्वयं शिक्षित
हुए हैं। इन लोगों ने अपने अपने घर को साफ करने में कोई कसर नहीं रखी। पर
यह को सुधार नहीं कहा जा सकता।
|