व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो नया भारत गढ़ोस्वामी विवेकानन्द
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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।
देश की स्त्रियों का जीवन
इस प्रकार गठित हो जाने पर ही तो तुम्हारे देश
में सीता, सावित्री, गार्गी का फिर से आविर्भाव हो सकेगा।
स्त्रियॉं जब शिक्षित
होंगी तभी तो उनकी संतानों द्वारा देश का मुख
उज्ज्वल होगा और देश में विद्या, ज्ञान, शक्ति, भक्ति जाग उठेगी। 'कुछ
विनाश न करो।' मूर्ति-भंजनकारी सुधारक लोग संसार का उपकार नहीं कर सकते।
किसी वस्तु को भी तोड़कर धूल में मत मिलाओ, वरन् उसका गठन करो। यदि हो
सके, तो सहायता करो, नहीं तो चुपचाप हाथ उठाकर खड़े हो जाओ और देखो मामला
कहां तक जाता है। यदि सहायता न कर सको तो अनिष्ट मत करो। ... जो जहाँ पर
है, उसको वहीं से ऊपर उठाने की चेष्टा करो।... तुम क्या कर सकते हो और मैं
भी क्या कर सकता हूँ? क्या तुम यह समझते हो कि तुम एक शिशु को भी कुछ सिखा
सकते हो? नहीं, तुम नहीं सिखा सकते। शिशु स्वयं ही शिक्षा लाभ करता है
तुम्हारा कर्तव्य है सुयोग देना और बाधा दूर करना।
जीवन में मेरी सर्वोच्च
अभिलाषा यही है कि एक ऐसा चक्र-प्रवर्तन कर दूँ,
जो उच्च एवं श्रेष्ठ विचारों को सब के द्वार-द्वार पहुँचा दे और फिर
स्त्री-पुरुष अपने भाग्य का निर्णय स्वयं कर लें।
'विचार और कार्य की
स्वतंत्रता ही जीवन, उन्नति और कुशल-क्षेम का एकमेव
साधन है।' जहाँ यह स्वतंत्रता नहीं है, वहाँ मनुष्य, उस जाति या राष्ट्र
की अवनति निश्चय होगी। जैसे मनुष्य को सोचने-विचारने और उसे व्यक्त करने
की स्वाधीनता मिलनी चाहिए, वैसे ही उसे खान-पान, पोशाक-पहनावा,
विवाह-शादी, हरेक बात में स्वाधीनता मिलनी चाहिए, जब तक कि वह दूसरों को
हानि न पहुँचाए।
मैं तुमसे कहता हूँ, इसी
समय हमको बल और वीर्य की आवश्यकता है। दुर्बलता
का उपचार सदैव उसका चिंतन करते रहना नहीं है, वरन् बल का चिंतन करना है।
हमारे देश के लिए इस समय आवश्यकता है, लोहे की तरह ठोस मांस-पेशियों और
मजबूत स्नायुवाले शरीरों की। आवश्यकता है इस तरह के दृढ़इच्छा-शक्तिसंपन्न
होने की कि कोई उसका प्रतिरोध करने में समर्थ न हो। आवश्यकता है ऐसी अदम्य
इच्छा-शक्ति की, जो ब्रह्मांड के सारे रहस्यों को भेद सकती हो।
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