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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो

नया भारत गढ़ो

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9591
आईएसबीएन :9781613013052

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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।


भारत के पतन और दारिद्र्य-दुःख का प्रधान कारण यह है कि घोंघे की तरह अपना सर्वांग समेटकर उसने अपना कार्यक्षेत्र संकुचित कर लिया था तथा आर्येतर दूसरी मानवजातियों के लिए, जिन्हें सत्य की तृष्णा थी, अपने जीवनप्रद सत्य-रत्नों का भांडार नहीं खोला था।

लेन-देन ही संसार का नियम है और यदि भारत फिर से उठना चाहे, तो यह परमावश्यक है कि वह अपने रत्नों को बाहर लाकर पृथ्वी की जातियों में बिखेर दे, और इसके बदले में वे जो कुछ दे सकें, उसे सहर्ष ग्रहण करे। विस्तार ही जीवन है और संकोच मृत्यु।

आज हमें आवश्यकता है वेदान्तयुक्त पाश्चात्य विज्ञान की, ब्रह्मचर्य के आदर्श, और श्रद्धा तथा आत्मविश्वास की। क्या समता, स्वतंत्रता, कार्य- कौशल, पौरुष में तुम पाश्चात्यों के भी गुरु बन सकते हो? क्या उसी के साथ साथ धर्म-विश्वास, संस्कृति और स्वाभाविक वृत्ति में हिंदुओं की परम मर्यादा पर जमे रह सकते हो? आपके वास्ते यह नितांत आवश्यक है कि अपनी शक्ति को व्यर्थ नष्ट करने और अक्सर निरर्थक बातें बनाने के स्थान पर, आप अंग्रेजों से नेताओं की आज्ञा का तुरंत पालन, ईर्ष्याहीनता, अथक लगन और अटूट आत्मविश्वास की शिक्षा प्राप्त करे। आज्ञा देने की क्षमता प्राप्त करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति को आज्ञा पालन करना सीखना चाहिए।.. जब तक हिंदू ईर्ष्या से बचना और नेताओं की आज्ञा का पालन करना नहीं सीखता, उसमें संगठन की क्षमता नहीं आयेगी। भारत को यूरोप से बाह्य प्रकृति पर विजय प्राप्त करना सीखना है और यूरोप को भारत से अंतःप्रकृति की विजय सीखनी होगी। ... हमने मानव-जाति के एक पहलू का विकास किया है, तो उन्होंने दूसरे का। चाहिए यह कि दोनों का मेल हो।

प्रत्येक मनुष्य एवं प्रत्येक राष्ट्र को महान् बनाने के लिए तीन बातें आवश्यक हैं --

1. सदाचार की शक्ति में विश्वास
2. ईर्ष्या और संदेह का परित्याग
3. जो सत् कर्म करने के लिए बलवान हों या कर रहे हों, उनकी सहायता करना।

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