व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो नया भारत गढ़ोस्वामी विवेकानन्द
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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।
एक नवीन भारत निकल पड़े।
निकले हल पकड़कर, किसानों की कुटी भेदकर, मछुआ,
माली, मोची, मेहतरों की झोपड़ीयों से। निकल पड़े बनियों की दुकानों से,
भुजवा के भाड़ के पास से, कारखाने से, हाट से, बाजार से। निकले झाड़ियों,
जंगलों, पहाडों, पर्वतों से!.. अतीत के कंकाल-समूह! - यही है तुम्हारे
सामने तुम्हारा उत्तराधिकारी भावी भारत। वे तुम्हारी रत्नपेटिकाएँ,
तुम्हारी मणि की अंगूठियां - फेंक दो इनके बीच, जितना शीघ्र फेंक सको,
फेंक दो, और तुम हवा में विलीन हो जाओ, अदृश्य हो जाओ, सिर्फ कान खड़े रखो।
तुम ज्योंही विलीन होगे, उसी वक्त सुनोगे, कोटिजीमूतस्यंदिनी,
त्रैलोक्यकंपनकारिणी भावी भारत की उद्बोधन ध्वनि 'वाहे गुरु की फतह।'
उसे जगाओ, और पहले की
अपेक्षा और भी गौरवमंडित और अभिनव शक्तिशाली बनाकर
भक्तिभाव से उसे उसके चिरंतन सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दो।
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