व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> नया भारत गढ़ो नया भारत गढ़ोस्वामी विवेकानन्द
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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।
आधी रोटी मिली तो तीनों
लोक में इतना तेज न अटेगा! ये रक्तबीज के प्राणों
से युक्त हैं। और पाया है सदाचार-बल, जो तीनों लोक में नहीं है। इतनी
शांति, इतनी प्रीति, इतना प्यार, बेजबान रहकर दिनरात इतना खटना और काम के
वक्त सिंह का विक्रम!
बड़ा काम आने पर बहुतेरे
वीर हो जाते हैं; दस हजार आदमियों की वाहवाही के
सामने कापुरुष भी सहज ही में प्राण दे देता है, घोर स्वार्थपर भी निष्काम
हो जाता है; परंतु अत्यंत छोटेसे कर्म में भी सब के अशात भाव से जो वैसी
ही नि:स्वार्थता, कर्तव्यपरायणता दिखाते हैं, वे ही धन्य हैं - वे तुम लोग
हो - भारत के हमेशा के पैरों तले कुचले हुए श्रमजीवियो! तुम लोगों को मैं
प्रणाम करता हूँ।
हमारी जनता को पार्थिव
वस्तुओं के बारे में बहुत कम ज्ञान है। हमारे जन
बहुत अच्छे हैं, क्योंकि यहाँ दरिद्र होना अपराध नहीं है। हमारी जनता
हिंसक नहीं है। अमेरिका और इंगलैंड में मैं बहुत बार केवल अपनी वेश- भूषा
के कारण भीड़ों द्वारा प्राय: आक्रांत किया गया हूँ। पर भारत में मैंने ऐसी
बात कभी नहीं सुनी कि भीड़ किसी मनुष्य की वेश-भूषा के कारण उसके पीछे पड़
गयी हो। पाश्चात्य देशों के गरीब तो निरे पशु हैं, उनकी तुलना में हमारे
यहाँ के गरीब देवता हैं। इसीलिए हमारे यहाँ के गरीबों को ऊँचा उठाना
अपेक्षाकृत सहज है। अन्य सभी बातों में हमारी जनता यूरोप की जनता की
अपेक्षा कहीं अधिक सभ्य है। लोग कहते हैं कि हमारे देश का जनसमुदाय बड़ी
स्थूल बुद्धि का है, वह किसी प्रकार की शिक्षा नहीं चाहता और संसार का
किसी प्रकार का समाचार जानना नहीं चाहता। पहले मूर्खतावश मेरा भी झुकाव
ऐसी ही धारणा की ओर था। अब मेरी धारणा है कि काल्पनिक गवेषणाओं एवं
द्रुतगति से सारे भूमंडल की परिक्रमा कर डालनेवालों तथा जल्दबाजी में
पर्यवेक्षण करनेवालों की लेखनी द्वारा लिखित पुस्तकों के पाठ की अपेक्षा
स्वयं अनुभव प्राप्त करने से कहीं अधिक शिक्षा मिलती है। अनुभव के द्वारा
यह शिक्षा मुझे मिली है कि हमारे देश का जनसमुदाय निबोंध और मंद नहीं है,
वह संसार का समाचार जानने के लिए पृथ्वी के अन्य किसी स्थान के निवासी से
कम उत्सुक और व्याकुल भी नहीं है।
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