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धर्म एवं दर्शन >> पवहारी बाबा

पवहारी बाबा

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9594
आईएसबीएन :9781613013076

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यह कोई भी नहीं जानता था कि वे इतने लम्बे समय तक वहाँ क्या खाकर रहते हैं; इसीलिए लोग उन्हें 'पव-आहारी' (पवहारी) अर्थात् वायु-भक्षण करनेवाले बाबा कहने लगे।


व्यावहारिक जीवन में ही आदर्श की शक्ति प्रकट होती है; व्यावहारिक जीवन में और उसके द्वारा ही वह हम पर क्रियाशील होता है। व्यावहारिक जीवन द्वारा ही वह हमारे लिए इन्द्रियगोचर बनता है तथा उसी के द्वारा वह आत्मसात् किये जाने योग्य रूप धारण करता है। व्यावहारिक जीवन को ही सीढ़ी बनाकर हम आदर्श की ओर उठते हैं। उसी पर हम अपनी आशाएँ बाँधते हैं, वही हमें कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है। ऐसे करोड़ों लोगों की अपेक्षा, जो शब्दों द्वारा आदर्श को अत्यन्त सुन्दर रंगों में चित्रित कर सकते हैं, और सूक्ष्मातिसूक्ष्म सिद्धान्तों का निरूपण कर सकते हैं, वह व्यक्ति कहीं अधिक शक्तिमान् है, जिसने अपने जीवन में आदर्श को अभिव्यक्त कर लिया है।

दर्शनशास्त्र मानवसमाज के लिए उस समय तक निरर्थक से ही हैं अथवा अधिक से अधिक बौद्धिक व्यायाम मात्र हैं, जब तक कि वे धर्म के साथ संयुक्त नहीं होते, तथा एक ऐसा व्यक्तिसमुदाय उन्हें प्राप्त नहीं हो जाता, जो उन्हें न्यूनाधिक सफलता के साथ व्यावहारिक जीवन में परिणत कर दे। जिन मतवादों से एक भी भावात्मक आशा नहीं थी, उन्हें भी जब किसी ऐसे व्यक्तिसमुदाय ने अपनाकर कुछ व्यावहारिक बना दिया, तो उनके भी विशाल संख्या में अनुयायी हमेशा के लिए हो गये। परन्तु ऐसे व्यक्तिसमुदाय के अभाव में अनेक सुनिश्चित भावात्मक मतवाद भी नष्ट हो गये।

हममें से अधिकांश लोग अपने कार्यों को अपने विचारजीवन के समकक्ष नहीं रख पाते। केवल थोड़े ही धन्यभाग ऐसा कर सकते हैं। हममें से अधिकांश व्यक्ति जब गम्भीर मनन करने लग जाते हैं, तो वे अपनी कार्यक्षमता खो बैठते हैं और जब अधिक कार्य में व्यस्त हो जाते हैं, तो गम्भीर मननशक्ति गँवा बैठते हैं। यही कारण है कि अधिकांश महान् विचारशील व्यक्तियों को अपने उच्च आदर्शों की व्यावहारिक परिणति को प्रश्न काल पर छोड़ देना पड़ता है। उनके विचारों को कार्यरूप में परिणत होने तथा प्रचारित होने के लिए और अधिक सक्रिय मस्तिष्कवालों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

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