धर्म एवं दर्शन >> सरल राजयोग सरल राजयोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण
योग में कल्पना को बना रहने दो, पर ध्यान रखो कि वह शुद्ध और पवित्र रहे।
कल्पना-शक्ति की प्रक्रिया के सन्दर्भ में हमारी सब की अपनी-अपनी अलग
विशिष्टताएँ हैं। जो मार्ग तुम्हारे लिए सब से अधिक स्वाभाविक हो, उसी का
अनुसरण करो; वही सरलतम मार्ग होगा।
हमारा वर्तमान जीवन अनेक पूर्व जन्मों के कर्मों का फल है। बौद्ध लोग कहते
हैं, ''एक से दूसरा दीप जलाया गया।'' दीप भिन्न-भिन्न है, प्रकाश एक ही है।
सदा प्रसन्न रहो, वीर बनो, नित्य स्नान करो और धैर्य, पवित्रता और लगन बनाये
रखो। तभी तुम यथार्थत: योगी बनोगे। जल्दबाजी कदापि न करो और यदि उच्चतर
शक्तियाँ प्रकट होती हैं, तो याद रखो कि वे तुम्हारे अपने मार्ग से भिन्न
पगडण्डियाँ हैं। वे तुम्हें लुभाकर अपने मुख्य पथ से भ्रष्ट न कर पाएँ।
उन्हें दूर कर दो और अपने एकमात्र लक्ष्य ईश्वर को दृढ़ता से पकड़े रहो। केवल
अनन्त की चाह करो, जिसे पाकर हमें चिरन्तन शान्ति प्राप्त होगी। पूर्ण स्वरूप
को प्राप्त करने पर फिर प्राप्त करने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहता; हम सदा के
लिए मुक्त और पूर्ण हो जाते हैं -- पूर्ण सत्-चित्-आनन्द!
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