कविता संग्रह >> स्वैच्छिक रक्तदान क्रांति स्वैच्छिक रक्तदान क्रांतिमधुकांत
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स्वैच्छिक रक्तदान करना तथा कराना महापुण्य का कार्य है। जब किसी इंसान को रक्त की आवश्यकता पड़ती है तभी उसे इसके महत्त्व का पता लगता है या किसी के द्वारा समझाने, प्रेरित करने पर रक्तदान के लिए तैयार होता है।
संजीवनी
मेघनाथ ने बाण चलाया
लक्ष्मण जी को मुर्च्छित पाया।
बिलख गए भ्राता रघुराई
आँखों में भर आयी रुलाई।
वानर का फिर हृदय पसीजा
वैद्य उठा लाए हनुमन्ता।
हाथ जोड़ वैद समझाई
लक्ष्मण जी का रक्त बहाई।
लक्ष्मण जी का रक्त निराला
बी-नेगेटिव लाए उजियाला।
आसपास के ब्लड-बैंक में
ऐसा रक्त है नहीं स्टाक में।
ब्लड-बैंक सुमेरु निराला
हनुमत केवल लाने वाला।
सूरज जगने से पहले आना
लक्ष्मण जी के प्राण बचाना।
रामचन्द्र ने हनुमत देखा
हनुमत ने निज शीश नवाया।
चिंता न करो आप श्रीराम
रक्त अभी लाऊं सिर धार।
सुमेरु पर पहुंचे हनुमान
संजीवनी करने लगे छांट।
सारी लाल खून की थैली
कैसे समझें कौन संजीवनी।
फिर उनको कुछ समझ न आया
ब्लड-बैंक सारा चिकलाया।
ब्लड-बैंक ले हनुमत आया
लक्ष्मण जी को खून चढ़ाया।
उनकी मूर्छा हो गयी दूर
खुशियों से झूमे सब सूर।
हनुमत जी ने काम सुधारा
रघुराई ने किया विचारा।
वीर हनुमान प्रिय तुम मेरे
लक्ष्मण भ्राता प्राण रखेरे।
रक्तदाता का खून लिवाए
उससे लक्ष्मण जान बचाए।
आशीर्वाद देउं मन हर्षायी
रक्तदाता पर कृपा बरसेगी।
दान करे जो अपना खून
महादानी नहीं कोई दूज।
रक्तदानी है बहुत प्यारा
सदा रहेगा हाथ दया का।
रक्तदान में सेवा लाए
मन मंचित वह फल पाए।
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