कविता संग्रह >> स्वैच्छिक रक्तदान क्रांति स्वैच्छिक रक्तदान क्रांतिमधुकांत
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स्वैच्छिक रक्तदान करना तथा कराना महापुण्य का कार्य है। जब किसी इंसान को रक्त की आवश्यकता पड़ती है तभी उसे इसके महत्त्व का पता लगता है या किसी के द्वारा समझाने, प्रेरित करने पर रक्तदान के लिए तैयार होता है।
अन्धकूप
पनघट उजड़ गया, गांव का
कोई नहीं आता पानी भरने
साथ खड़े,
खामोश पीपल के पत्ते
गिरते रहते, गिरते रहते।
गत वर्ष
दहेज से प्रताड़ित
नवेली कूद गयी थी।
सब दूर से
पथ मोड़कर गुजर जाते हैं,
कहते हैं
नवेली की आत्मा बसती
और सुना है
अनेक अजन्मी कन्याएँ भी
बसती हैं।
जन्म से पूर्व करके कत्ल
हवाले कर दिया,
कूप के।
इसका बासी-सड़ा पानी
नहीं निकालता कोई।
पुकार पुकार के चीखता।
पनघट सुनसान है
पनघट उदास है।
चीखता रहता अंधा कुंआ
गला-सड़ा पानी निकालो
नए स्रोत खुलने दो
ताजा जल आने दो
नहीं तो मर जाऊंगा
बंद हो जाऊंगा।
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