कविता संग्रह >> स्वैच्छिक रक्तदान क्रांति स्वैच्छिक रक्तदान क्रांतिमधुकांत
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स्वैच्छिक रक्तदान करना तथा कराना महापुण्य का कार्य है। जब किसी इंसान को रक्त की आवश्यकता पड़ती है तभी उसे इसके महत्त्व का पता लगता है या किसी के द्वारा समझाने, प्रेरित करने पर रक्तदान के लिए तैयार होता है।
बदलाव
वह शहर का गुण्डा मवाली
फुटपाथ पर पला-बढा!
बदमाश, चोर, उचक्कों में रहा!
उन्हीं में रम गया
वैसा ही बन गया।
मारा-पीटी, खून-खराबा
अच्छा लगने लगा।
एक दिन, चौपाल में
रक्तदान शिविर लगा
यूं ही वह घूमता हुआ
वहां आ गया।
वीरू तुम भी खून दोगे?
एक बालक ने कह दिया।
क्या बकते हो?
वीरू खून देता नहीं लेता है... ....
तुम क्या जानों वीरू
जो खून देने में मजा है
वह लेने में कहां - कहा।
क्या सच कहते हो?
लेटकर देख लो
अभी पता लग जाएगा।
वीरू टेबल पर लेट गया...
पहली बार रक्तदान किया
एक अजनबी के लिए
उसकी प्रशंसा हुई
सम्मानित किया गया
अखबार में फोटो छपी
पहली बार उसने
लोगों की आँखों में
प्यार देखा....
जीवन का अर्थ
समझ में आ गया।
खून से प्यार हो गया
रक्तदान करने का
आनंद समझ में आ गया।
पहले वह स्वयं
रक्तदान करता था
फिर शिविर लगाने लगा
एक दिन उस शहर का
महादानी बन गया।
गऊदान तो होता है, जीवन में एकबार।
रक्तदान तो दोस्तों, करते बारम-बार।।
मंदिर में प्रसाद लेत, पहले भेंट चढाय।
दान रक्त का लेन में, क्यों नहीं मन सकुचाय।।
जीवन में एक बार भी, किया नहीं रक्तदान।
असली सुख महादान का, मिले नहीं इंसान।।
आओ मिलकर करे कुछ ऐसा।
रक्त इन्तजार करे रोगी का।।
स्वजन होना चाहिए, दुर्घटना में साथ।
फस्ट-एड को जानता, रक्तदान दे भाग।।
रक्त नहीं वह पानी है।
जिस रक्त में नहीं जवानी है।।
रक्त तो सबके शरीर में रहता है।
रक्तदान करो तो वह जवां रहता है।।
कितना भी जोडले, एक दिन जला देंगे।
जितना रक्तदान किया, जिंदा रहेगा।।
ग्रह दोष चढ़ जाए तो, राहु मंगलवार।
लाल रक्त के दान से, हो सब मंगलकार।।
हो सब मंगलकार, न कोई दोष सताए।
रक्तदाता का स्वागत कर, प्रभु पास बैठावे।।
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