कविता संग्रह >> स्वैच्छिक रक्तदान क्रांति स्वैच्छिक रक्तदान क्रांतिमधुकांत
|
5 पाठकों को प्रिय 321 पाठक हैं |
स्वैच्छिक रक्तदान करना तथा कराना महापुण्य का कार्य है। जब किसी इंसान को रक्त की आवश्यकता पड़ती है तभी उसे इसके महत्त्व का पता लगता है या किसी के द्वारा समझाने, प्रेरित करने पर रक्तदान के लिए तैयार होता है।
रक्ततंत्र
वह कहता
रक्तधाम में बहुत गड़बड़ है
खून पहले दबंगों को मिलता है।
कभी-कभी तो बिकता भी है
उसे प्यार से बैठाया, समझाया
पहले रक्तदान कम होता था
अब सबने समझ लिया।
रक्त तो बहुत आता है
औद्योगिक क्रान्ति हुई
तो आवश्यकता भी बढ़ गई
एक अनार, सौ बीमार होंगे।
तो संभव है
कहीं कुछ गड़बड़ हो
परन्तु दोस्त,
इतना अवश्य है
न इसकी जमाखोरी होगी
न अनावश्यक उपयोग होगा
रक्त जितना भी होगा।
जरूरतमंद इंसान के काम आयेगा
इस गड़बड़ रक्ततंत्र पर
चोट करना सरल है।
रक्तदान करो, कराओ।
0 0
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book