कविता संग्रह >> स्वैच्छिक रक्तदान क्रांति स्वैच्छिक रक्तदान क्रांतिमधुकांत
|
5 पाठकों को प्रिय 321 पाठक हैं |
स्वैच्छिक रक्तदान करना तथा कराना महापुण्य का कार्य है। जब किसी इंसान को रक्त की आवश्यकता पड़ती है तभी उसे इसके महत्त्व का पता लगता है या किसी के द्वारा समझाने, प्रेरित करने पर रक्तदान के लिए तैयार होता है।
जय श्री रक्तदाता
ओम जय श्री रक्तदाता, प्रभु श्री रक्तदाता।
पीड़ित जनों के संकट, क्षण में ह जाता।। ओम जय...
रक्त जो मुझमें बहता, सारा है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा।। ओम जय...
तुम बिन और न सूझे, जब है रक्त चाहता।
तुम्हारा दान मिले से, जीवन बच जाता।। ओम जय...
जितना रक्त इस जग में, तुमने दान किया।.
मन वांछित फल पाया, पुण्य महान किया।। ओम जय...
रक्तदान का भाव हमारे, मन में बस जावे।
बार-बार इस तन से, सेवा हो जाए।। ओम जय...
जन्मदिन, मुण्डन शादी जो, शुभ अवसर आवे।
रक्तदान का कैम्प लगे जब, उत्सव हो जावे।। ओम जय...
जो देवे फल पावें, तन मन हर्षावे।
दुख मिटावे तन का, सुख सम्पत्ति पावे।। ओम जय...
एक दूजे को बाँटों, संकट जब आता।
कोई विकल्प न इसका, जब है रक्त चाहता।। ओम जय...
रक्तबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षा कर्ता।
जीवन जोश तुम्हीं से, जग में सुख भर्ता।। ओम जय...
जग में तुमसा दानी, कोई नहीं दूजा।
सेवा अगर तुम्हारी, सबसे बड़ी पूजा।। ओम जय...
रक्तदाता जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत ''ब्लड-बैंक'' सबका, भाग्य सुधर जावे।। ओमजय...
आओ मिलकर सारे, सब जन शपथ करें।
अब ना कोई प्राणी, रक्त बिन प्राण तजे।।
ओम जय श्री रक्तदाता, प्रभु श्री रक्तदाता।।
0 0
0