कविता संग्रह >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
शीतल पवन
ऊष्ण होकर बह पवनक्यों ठंड संग लाती है,
ठंड के मारे हाल बुरा है
कंपकंपी बंध जाती है।
यहां जंगल बियाबान में
हूं तुम पर ही मैं आश्रित
तुम ही यदि दोगी धोखा
हो जाऊंगा मैं स्वयं अधीर
आकर बंधाओं मेरी धीर
क्यों मुझे आज रूलाती है।
ठंड के मारे हाल बुरा है
कंपकंपी बंध जाती है।
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