लोगों की राय

कविता संग्रह >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605
आईएसबीएन :9781613015919

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

26 पाठक हैं

आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ

 

मेरे आंगन में

हरी भरी हरियाली
फैली हो मेरे आंगन में
मेरा घर बगीचा हो
मैं रहता हों मधुबन में।

ना कहीं प्रदूषण हो
ना कहीं पर शोर हो
हरियाली ही हरियाली
बस मेरे चारों  ओर हो

तभी तो जीना, जीना होगा
वरना बेहतर है मर जाने में।
मेरा घर बगीचा हो
मैं रहता हों मधुबन में।

प्रकृति की सुन्दर वस्तुएं
ओर सारी सुखमय चीजें
खाने पीने की सारी सुविधा
बस छोटे घर में हो मेरे

मैं रहता हों छत पर उसके
घर बना हो तलहटी में।
मेरा घर बगीचा हो
मैं रहता हों मधुबन में।

या फिर मेरे घर के अन्दर
समस्त समुन्द्र हो सारे
सारी उसमें नदियां  हों
आसमान के हों तारे।

समुन्द्र के मध्य का टापू
बस हो मरे आंगन में।
मेरा घर बगीचा हो
मैं रहता हों मधुबन में।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book