कविता संग्रह >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
अमीर और गरीब
अमीर और गरीब मेंबस फर्क है इतना
अमीर नींद चैन की सोता
गरीब रातभर जाग कर
पहरा अमीर का है देता।
सुविधा के इस दौर में तो
हर सुविधा अमीर के पास है होती
सोने के लिए उसके नीचे ऊपर
मुलायम रूई की रजाई है होती।
रहने के लिए पूरा बड़ा महल
खाने के लिए बहुत सा माल
सरदी हो या हो भारी गरमी
लेते हैं मजा पूरे ही साल।
अमीर और गरीब में
बस फर्क है इतना।
गरीब तो गरीब है
उसका क्या होगा हाल
मंहगाई की वजह से तो
गरीब का जीना हुआ बेहाल
खाने पीने की तो पूछो ही मत
जब धरती ही उसका बिस्तर है होता
अमीर पथ पर अग्रसर है
गरीब और गरीब हो चला
अमीर और गरीब में
बस फर्क है इतना।
यदि किसी अमीर की
चीर जाये जो कभी
कर देते हैं जमीन आसमां एक
मगर गरीब का तन तो
क्षत-विक्षत होने पर भी
उतना ही काम करता है।
अमीर के लिए आसूं बहाते हैं सभी
गरीब की तरफ कोई नजर भर नहीं देखता।
अमीर और गरीब में
बस फर्क है इतना।
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