| कविता संग्रह >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
 | 
			 26 पाठक हैं | |||||||
आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
 
      
    
पानी और उमस
काली घटाएंआ-आ कर
धरती का दामन
फिर से
चूमने लगी हैं।
लग कर
धरती के सीने से
इसके मन के
आन्तरिक कोनों को
झकझोर कर
मन को प्रफुल्लित
करने लगी हैं।
हर तरफ
हरियाली का मंजर
मोर की ध्वनि से
सारा वातावरण
शोभायमान,
कोयल फिर से
कूकने लगी हैं।
बयार कभी शीतल
तो कभी गरम
तन भी तर
पसीने से।
तो कभी तर
बारिश की बूंदों से
कभी ठंडा तन तो
कभी पसीने
छूटने लगे हैं।
0 समाप्त 0

 i
 
i                 





 
 
		 

