कविता संग्रह >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
अन्दर का कवित्व
एक बार मेरे अन्दर का कवित्वऑफिस के अन्दर जाग गया।
मैं लगा सुनाने अपनी कविता
सुन कविता मेरा अधिकारी भाग गया।
शायद उन पंक्तियों में ही
कुछ राज की बात थी
या तो कविता अच्छी न थी
या बात कोई ओर थी।
दूसरे दिन जब आया अधिकारी
मैनें पूछा महोदय जी
कल आपको हुआ था क्या
क्या मेरी पंक्तियों में
कोई रस न था।
तब फिर अधिकारी कहने लगा
नहीं-नहीं भाई आपकी पंक्तियों से तो
रस बहुत टपक रहा था
मगर कमबख्त बीवी का
मुझे सेक्रेटरी में दर्शन हुआ।
राज की बात की है ये
कहना ना किसी दूसरे से
निकल कर आया हूं आज
मेरे कैबिन की कुर्सी से।
याद है मुझे बीवी का
वो भंयकर रूप
एक हाथ में बेलन था
और एक हाथ में था जूस,
पहले पिलाती है जूस मुझे
फिर पीटती है बेलन से।
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