कविता संग्रह >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
पहली बार
आज पहली बारतुमसे बातें करके
मन वीणा का बजा है तार।
मन में बैठी सरस्वती
होंठों पर आकर बैठ गई
पहन गलें में शब्दों का हार।
आज पहली बार
तुमसे बातें करके
मन वीणा का बजा है तार।
मन झनझना उठा
रोंए नृत्य करने लगे
धुंए का उडऩे लगा गुब्बार।
आज पहली बार
तुमसे बातें करके
मन वीणा का बजा है तार।
आंखें खुशी से चंचल हुई
होठों पर हंसी फैलने लगी
हृदय में बढऩे लगे विकार।
आज पहली बार
तुमसे बातें करके
मन वीणा का बजा है तार।
लुप्त सी मधुर तान छेड़
आंखों से नुकीले बाण छोड़
हृदय को चीर हुए हैं पार।
आज पहली बार
तुमसे बातें करके
मन वीणा का बजा है तार।
सुप्त बीज फूटने लगा
मधु स्नेह की बूंदों से
गिरने लगी है मधुर धार।
आज पहली बार
तुमसे बातें करके
मन वीणा का बजा है तार।
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