लोगों की राय

कविता संग्रह >> यादें

यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607
आईएसबीएन :9781613015933

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



एक बार


एक बार मैं
खादी का कुर्ता पहन
बस में यात्रा रहा था कर,
परिचालक आया मेरे पास
टिकट लेने को मुझसे कहा
मैं पैसे निकाल ही रहा था
तभी पीछे बैठे एक.....
एक बूढ़े फूस व्यक्ति ने
मुझ पर जैसे कटाक्ष किया
इससे पैसे क्यों ले रहे हो साब
इसके पास तो चाकू होगा।

मैं यहाँ पर जैसे चुप रहा
मुझे एक पल के लिए तो
बस ऐसा ही लगा
मैं यहाँ अंग्रेजों के बीच
आकर जैसे फंस गया
क्या यह वहीं देश है
जहाँ खादी पर ही
बस जोर दिया गया था।
क्या यह वही देश है
जहाँ पर खादी के लिए
विदेशी कपड़ा जला दिया था।
क्या यह वही देश हैं
जहाँ पर गाँधी जी ने
स्वयं सूत कात कपड़ा बुना।

तभी.......
जहन में आया कि......
नहीं वह देश तो अलग ही था
आज का भारत
वह भारत नहीं रहा
न वह संस्कृति रही
और न रहा प्रेम भाव।
 
संस्कृति बचाने वालों को
देखा जाता है बुरी नजर से
दिन दूनी रात चौगुनी     
कर रहा है देश तरक्की
पर देश भूल रहा है
उसूलों को
और भूल रहा है अपनी संस्कृति।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book