कविता संग्रह >> यादें यादेंनवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
अंकुर की पुकार
आँधी की तेज रफ्तार में
एक बीज था उड़ रहा
लिए अपने छोटे उदर में
एक अंकुर फिर रहा।
आँधी की तेज हवाओं ने
धरा खोदकर उसे निकाला
ले अपने आगोश में
चारों तरफ उसे घूमाया
लिए अपने छोटे उदर में
एक अंकुर फिर रहा।
फिर एक जगर पर वह
छुटा हवा की पकड़ से
आ गिरा धरती पर वह
मिट्टी ने उसे ढक दिया
लिए अपने छोटे उदर में
एक अंकुर फिर रहा।
ठण्डी हवा का झोंका आया
मन हर्षा प्रफु ल्लित काया
वर्षा आने की सोच वह
अंकुर उसने अपना बढाया।
लिए अपने छोटे उदर में
एक अंकुर फिर रहा।
मगर वर्षा ने धोखा दिया
उधर से रूख बदल लिया
मन मसोस कर रह गया
अंकुर उसका मुरझाया।
लिए अपने छोटे उदर में
एक अंकुर फिर रहा।
मगर न जाने हवा ने फिर
जाने क्या जादू किया
झोंका दिया वर्षा को
अंकुर पर बरसा दिया
लिए अपने छोटे उदर में
एक अंकुर फिर रहा।
मन से निकले यदि पुकार
भगवान उसे पूरा ना करे
ऐसा कभी हुआ नहीं
और कभी ना होगा ऐसा।
लिए अपने छोटे उदर में
एक अंकुर फिर रहा।
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